कल शायद सबने रावण जलाया होगा, या फिर रावण को जलते देखा होगा, या फिर किसी को रावण के नाम से चिढाया होगा....
क्या कल किसी ने एक बार भी राम की बात करी.....?
शायद रावण हमारी ज़िन्दगी का ज्यादा बड़ा हिस्सा बन गया है, राम से भी बड़ा...
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यहाँ रावण और राम वाल्मीकि रामायण वाले पात्र न हो कर हमारे जीवन में और हमारी सोच में चलने वाले विचार हैं....
यहाँ रावण और राम वाल्मीकि रामायण वाले पात्र न हो कर हमारे जीवन में और हमारी सोच में चलने वाले विचार हैं....
अगर कल हमने बहुत तेज़ पटाखे चलाकर पड़ोसियों की नींद में खलल डाला था तो हमने रावण को थोडा पोषित करा था.....
अगर कल हमने किसी दोस्त को ज्यादा चिढ़ा कर खिजा दिया था या अपने माता-पिता को नाराज़ करा या किसी अनजान को गाली दी तो हमने रावण को और पोषित करा था......
पर हमारे लिए तो दशहरा का मतलब तो सिर्फ रावण, मेघनाद और कुम्भकरण के पुतलो का दहन रह गया है और उसके साथ लगने वाले मेले में से चाट-पकोड़ी खाना और बच्चों को खिलोने दिलाना रह गया है....
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