This Tagore essay on the cult of the nation could have been written in 2016 (and not 99 years ago)!! "When this idea of the Nation tries to pass off the cult of collective selfishness as a moral duty, it attacks the very vitals of humanity." टैगोर की "राष्ट्र का चरमपंथ" पर करी गयी यह टिपण्णी शायद 2016 में लिखी गयी हो, न की 99 वर्ष पूर्व!! "जब राष्ट्र का विचार सामूहिक स्वार्थ के अनुयायियों द्वारा एक नैतिक ज़िम्मेदारी की तरह प्रचारित हो, तब वह मानवता की जड़ों पर सीधा हमला होता है" राष्ट्र का विचार और राष्ट्रीयता आज लोगों के लिए पूर्ण-कालिक व्यवसाय बन गया है। और यही विचार और उससे उत्पन्न भेड़चाल जैसे राष्ट्रवादियों का पंथ इन सबके लिए भी सबसे बड़ा ख़तरा बन के उभर रहा है , क्योंकि इसमें इनको शुरूआती तौर पे मिली अकल्पनीय सफलता अब इनके आते चढ़ के बोल रही है और इनको दिनोंदिन और अधीर बना रही है की यह ज़्यादा से ज़्यादा तथाकथित उच्च आदर्शों (Higher Ideals) पर अपना आधिपत्य जमा सकें। जैसे जैसे इनको मिलने वाली सफलताएँ बड़ी होती जा रही हैं, उसी अनुपात में हितों-का...
A student by choice and a teacher by profession. May every one share and benefit form knowledge and words of wisdom. These are not mine but still they are mine.